मन (कविता) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु-11-Feb-2024
दिनांक- 11.० 2.2024 दिवस- रविवार स्वैच्छिक विषय- मन प्रतियोगिता हेतु
मन मीत भी है,यही प्रीत भी है, इससे ही है खुशियांँ और गम। इससे ही हर रिश्ते- नाते, इससे ही तुम इससे ही हम।
यह प्रेम भी है, विश्वास भी है, हर जीवन की यह आस भी है। इसको उज्जवल रखलें हम सब, यह धरती और आकाश भी है।
इंसान में इंसानियत है इससे, हैवानियत भी है जगाता यही। सात्विकता से इसे भर लें हम, आध्यात्मिकता भी लाता है यही।
है रिश्तो में एहसास यही, बेमतलब का बकवास यही। इससे ही मिलता मोक्ष हमें, बिगड़े तो सत्यानाश यही।
पूजा भी यह,सजदा भी यह, गिरजाघर का प्रार्थना भी यह। गुरुद्वारे का साहेब भी यह, अंतहीन ज्ञान की खोज भी यह।
यह ही प्रेसी को प्यार करे, कभी माता बनके दुलार करे। वीरों में ओज इसी से है, यह अपनों में मनुहार करे।
यह वफ़ा भी करे और ज़फा भी करे, बेगैरत को है सफा भी करे। कुछ भूलों को यह माफ़ करे, बुरी नीयत को तो दफा है करे।
साधना शाही, वाराणसी
Mohammed urooj khan
13-Feb-2024 12:41 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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नंदिता राय
12-Feb-2024 06:28 PM
Nice
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Gunjan Kamal
11-Feb-2024 02:54 PM
बहुत खूब
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